मधुपर/सोनभद्र(धीरज मिश्रा) मंजू मार्ग बहुआरा त्रिदिवसीय दुर्गा पूजन के बाद एकदिवसीय रामलीला मंचन कर दर्शकों का मन मोह लिया असत्य पर सत्य की जीत को दर्शाते हुए रावण का प्रतीकात्मक पुतला जलाया गया। एक दिवसीय रामलीला मंचन का शुभारंभ ग्राम प्रधान मनोज पटेल ने फीता काटकर किया और सम्बोधन के दौरान जय माँ दुर्गा समिति मंजू मार्ग बहुअरा के सभी पदाधिकारियों का तहे दिल से आभार ब्यक्त करते हुए बताया कि इस तरह के आयोजनों से समाज मे एकजुटता की भावना पल्लवित होती है।
यह कार्यक्रम विगत कई वर्षों से चला आ रहा समिति का कार्य सराहनीय व प्रशंशनीय है हम तन मन धन से समिति के साथ हैं । सामाजिक कार्यकर्ता और समिति के संयोजक सामाजिक कार्यकर्ता धीरज मिश्रा ने आये हुए सभी अतिथियों एवं आगन्तुकों का आभार ब्यक्त करते हुए बताया लगातार एगारह वर्षों से चली आ रही यह परम्परा हमेशा कायम रहे समिति के पदाधिकारियों का उत्साह बर्धन करते हुए कहा कि कार्यकर्ता ही किसी भी संगठन की रीढ़ होते हैं ।
यह परम्परा हमेशा कायम रहे आप सभी के साथ व सहयोग से इस तरह के कार्यक्रमों का आयोजन हो पाता है जो कि प्रशंशनीय है ।संचालक करते हुए पंकज मिश्रा ने बताया कि प्रतिभाए किसी परिचय की मोहताज नही किसी पारिवारिक पृष्ठभूमि की जरूरत नही क्षेत्रीय कलाकारों द्वारा एक दिवसीय रामलीला मंचन प्रशंशनीय है । दशहरा पर्व असत्य पर सत्य की जीत के रूप मनाया जाता है हमें इस पर्व से बहुत कुछ सीखने की जरूरत है और हमेशा सत्य के साथ रहने की जरूरत है सत्य हमेशा जीतता है और असत्य हमेशा पराजित होता है ।
विजय दशमी को रावण का पुतला जलाकर हम राम की जयजयकार करते हैं,लेकिन विजय पर्व की सार्थकता तब है,जब हम राम के उन गुणों और आदर्शों को अपना सकें,जिनके बल पर राम ने विजय पाई।राम की विजय में सेवाधर्म, सदाचार, संवेदना,दया,करुणा,प्रेम, सहानुभूति जैसे गुण प्रदर्शित है।जिसे रामलीला के रूप में मंचित करते हैं।दशहरा जैसे पर्व मनाने का अर्थ है कि अतीत का नए सिरे से स्मरण कर जीवन में प्रगति लाये ।राम और रावण को धर्म गर्न्थो ने भी क्रमशः अच्छाई और बुराई का प्रतीक माना है,इस पर्व के बहाने यह संदेश भी जाता है कि अंततः बुराई की हार ही होती है। यह पर्व हमे एक मौका आत्ममंथन का भी देता है,जिससे अपने अंदर के रावण को पहचानने का मौका मिलता है।रावण के दस सिर के समान है ईर्ष्या,लोभ,क्रोध,अविवेक, भय, अनाचार,क्रूरता,मद,व्यहमोह और संवेदनशीलता। यह पर्व हमे एक मौका आत्ममंथन का भी देता है,जिससे अपने अंदर के रावण को पहचानने का मौका मिलता है। रावण के दस सिर के समान हैं ईर्ष्या,लोभ,क्रोध,अविवेक,भय, अनाचार,क्रूरता,मद,व्यहमोह और संवेदनशीलता। दशहरा और विजयपर्व के मौके पर अगर हम रावण के इन दस सिरों का मर्दन करके अपने भीतर के रावण का वध करें, तो न केवल हम एक बेहतर इंसान बन सकते हैं बल्कि एक बेहतर समाज और बेहतर राष्ट्र निर्माण में अपना योगदान कर सकते हैं। इस अवसर पर समिति सचिव आजय मौर्य, अध्यक्ष राजेश पति त्रिपाठी, ई0 पीयूष मिश्रा, अरुण , सुभाष, मुरलीधर मिश्रा, विजय सहित सभी पदाधिकारी व हजारों की संख्या में दर्शक उपष्टित रहे।
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