कई जिलों के बड़े कलाकारों ने किया मंच साझा
सर्वेश श्रीवास्तव
सोनभद्र। सोन घाटी सोन माटी के सोन धरा पर भव्य एवं दिव्य कजरी महोत्सव का आयोजन संस्कृति विभाग, उत्तर प्रदेश लोक एवं जनजाति संस्कृति संस्थान लखनऊ, भातखण्डे संस्कृति विश्वविद्यालय लखनऊ, राजकीय इंजीनियरिंग कॉलेज और जिला प्रशासन सोनभद्र के संयुक्त तत्वाधान में राजकीय इंजीनियरिंग कॉलेज चुर्क के प्रांगण में
मंगलवार को हुआ।मुख्य अतिथि जिलाधिकारी बद्री नाथ सिंह, निदेशक उत्तर प्रदेश लोक कला एवं जनजाति संस्कृति संस्थान अतुल द्विवेदी, इंजीनियरिंग कॉलेज के निदेशक जीएस तोमर एवं पंडित आलोक कुमार चतुर्वेदी और शिक्षाविद डॉ अंजलि विक्रम सिंह ने दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया। कजरी गायन में आश्रया
द्विवेदी प्रयागराज व राकेश उपाध्याय गोरखपुर द्वारा प्रस्तुति दी गई। कजरी गायन एवं नृत्य फगुनी देवी मीरजापुर, करमा, डोमकच, झूमर नृत्य नाटिका आशा देवी सोनभद्र द्वारा प्रस्तुत किया गया। इसी प्रकार से कजरी गायन एवं नृत्य विन्ध्य कन्या स्नातकोत्तर महाविद्यालय की छात्राओं द्वारा तथा नृत्य नाटिका शिवानी मिश्रा वाराणसी द्वारा प्रस्तुति की गई। सभी सम्मानित कलाकारों को जिलाधिकारी बद्रीनाथ सिंह, निदेशक लोक कला एवं जनजाति संस्कृति संस्थान लखनऊ अतुल द्विवेदी, पंडित आलोक कुमार चतुर्वेदी,
धनंजय पाठक, डॉ अंजलि विक्रम सिंह, जीएस तोमर, अजय कुमार सिंह के द्वारा सम्मानित किया गया।कार्यक्रम के मुख्य अतिथि जिलाधिकारी ने कहा की भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता पर आधारित ऐतिहासिक, पौराणिक, सांस्कृतिक विंध्य पर्वत की श्रृंखलाओं के हृदय तल पर स्थित पवित्र धरा पर भव्य एवं दिव्य, सुसज्जित तरीके से कजरी के महत्व को पहुंचाने का प्रयास सभी के सहयोग से किया गया। कजरी पूर्वी उत्तर कजरी की उत्पत्ति सोनभद्र व मिर्जापुर से मानी जाती है। सोनभद्र व मिर्जापुर पूर्वी उत्तर प्रदेश में सोन व गंगा के किनारे बसा जिला है। इसे सावन व भादो के महीने में गाया जाता है। अतुल द्विवेदी ने कहा कि यह अर्ध-शास्त्रीय गायन की जीवंत शैली के रूप में भी विकसित हुआ है और यह गायन केवल बनारस घराने तक ही सिमित होता जा रहा है। कजरी गीतों में वर्षा ऋतु का वर्णन विरह-वर्णन तथा राधा-कृष्ण की लीलाओं का वर्णन अधिकतर मिलता है। कजरी की प्रकृति क्षुद्र है। इसमें श्रृंगार रस की प्रधानता होती है। राजकीय इंजीनियरिंग कॉलेज के निदेशक जीएस तोमर ने कहा की उत्तर प्रदेश पूर्वांचल में कजरी गाने का प्रचार खूब पाया जाता है। यह लोकगीतों में से जीवंत शैली है कजरी, जिसके जरिए महिलाएं अपने संबंधों को सहेजती हैं. इसमें पति-पत्नी के बीच श्रृंगार, प्रेम, विरह की बातों को गीतों के माध्यम से बताया जाता है, तो वहीं ननद-भाभी, सास-बहू, देवर-भाभी के प्रेम को भी खूबसूरत भाव के साथ प्रस्तुत किया जाता है। पंडित आलोक कुमार चतुर्वेदी ने कहा की उत्तर प्रदेश सरकार व जिला प्रशासन की अनोखी पहल है। गौरव का विषय यह है कि इस बार कजरी महोत्सव सोनभद्र के चुर्क में स्थित राजकीय इंजीनियरिंग कॉलेज प्रांगण में आयोजित हुआ है। पूरे पूर्वांचल का लोक परंपरा लोकगीतों से गहरा नाता है। बताया कि कजरी एक विधा नहीं बल्कि वह जीवंत शैली है, जिसके जरिए महिला अपने प्रेम वेदना श्रृंगार को बयां करती है तो वहीं पति के दूर जाने पर नवविवाहिता के विवाह की भी बातें कही गई हैं। डॉ अंजलि विक्रम सिंह ने कहा कि ने कहा की कजरी के माध्यम से ननद-भाभी के नटखट रिश्ते, देवर भाभी के बीच के पवित्र संबंध, सास बहू के बीच की नोकझोंक को भी बताया गया है। उन्होंने बताया कि कजरी की शुरुआत सोनभद्र, मिर्जापुर, बनारस से मानी जाती है। कार्यक्रम में अतुल द्विवेदी, जीएस तोमर, अजय कुमार सिंह, शेषनाथ चौहान, रमाशंकर यादव, अपर जिला पंचायत राज अधिकारी, विनय कुमार सिंह सहित आदि उपस्थित रहे।