भागवत पुराण कथा को श्रवण करने वाले भक्त निश्चित रूप से मोक्ष को प्राप्त कर लेते हैं :पंडित राजकिशोर शास्त्री

रेनुसागर सोनभद्र। पृथ्वी लोक पर बार-बार परमात्मा का अवतरण होता है। उनकी लीला होती है और गुणगान करते हुए धर्म-कर्म के साथ ही महायज्ञ होते हैं। ऐसे में परमात्मा स्वयं यहां पर जन्म लेते हैं। वे जीव के प्रेम उसकी करुण पुकार को जरूर सुनता है। भागवत महात्म्य सुनाते हुए कहा कि जब भी परमात्मा का गुणानुवाद इस पृथ्वी पर होता है या परमात्मा स्वयं आकर यहां पर तरह-तरह की लीलाएं करते हैं तो देवतागण भी पृथ्वी पर जन्म लेने के लिए लालायित रहते हैं। भागवत पुराण कथा को श्रवण करने वाले भक्त निश्चित रूप से मोक्ष को प्राप्त कर लेते हैं। जिस प्रकार राजा परीक्षित श्राप से मुक्त हो गए। अनेकानेक राक्षस और पापी भी उस परमात्मा की कृपा से मुक्ति पा गए। ऐसे सभी पुराणों और ग्रंथों में महापुराण की संज्ञा पाने वाला श्रीमद्भागवत पुराण है। जिसकी कथाओं का श्रवण करने के लिए इतने बड़े-बड़े आयोजन किए जाते हैं।

यह बात रेनुसागर कालोनी में श्री श्याम सेवा मण्डल रेनुसागर के तत्वाधान में आयोजित श्रीमदभागवत कथा ज्ञानयज्ञ महोत्सव में श्रीमद्भागवत कथा के दुशरे दिन पीठादिस्वर श्री महाकाल पाताल भैरव,भैरव मंदिर भैयाथान सूरजपुर जनपद सरगुजा से पधारे पंडित आचार्य राज किशोर शास्त्री महाराज ने कहीं। कथा के दौरान परीक्षित जन्म ,कपिल देवहूती संवाद एवं सती चरित्र का का विधिवत वर्णन किया।
शुक्रवार को कथा वाचक पंडित आचार्य राज किशोर शास्त्री महाराज ने कहा कि मायारूपी संसार में मानव का मन अशांत हो जाता है: वास्तव में श्रोता ही भागवत कथा के प्राण हैं। कथा का श्रवण करने से भयभीत मन को शांति मिलती है। वहीं मन काबू में रहता है तथा भागवत रस में डुबकी लगाने का मौका मिलता है। मनुष्य को एकचित होकर भगवान के लीला पर आधारित कथा को सुन कथारूपी गंगा में डुबकी लगाना चाहिए। माया रूपी संसार में मानव का मन अशांत हो जाता है। जहां कथा सुनने से अशांत मन को शांति मिलती है और भगवान के चरणों में मोक्ष की प्राप्ति होती है।कथावाचक ने कहा कि श्रंगी ऋषि के श्राप को पूरा करने के लिए तक्षक नामक सांप भेष बदलकर राजा परीक्षित के पास पहुंचकर उन्हें डंस लेता है। जहर के प्रभाव से राजा का शरीर जल जाता है और मौत हो जाती है। श्रीमद्भागवत कथा सुनने से राजा परीक्षित को मोक्ष प्राप्त होता है। पिता की मौत को देखकर राजा परीक्षित के पुत्र जनमेजय क्रोधित होकर सर्प नष्ट के लिए आहुतियां यज्ञ में डलवाना शुरू कर देते हैं। इसके प्रभाव से संसार के सभी सर्प यज्ञ कुंडों में भस्म होना शुरू हो जाते हैं।

देवता सहित सभी ऋषि-मुनि राजा जनमेजय को समझाते हैं और उन्हें ऐसा करने से रोकते हैं। आचार्य ने कहा कि कथा के श्रवण प्रवचन करने से जन्म-जन्मांतरों के पापों का नाश होता है और विष्णुलोक की प्राप्ति होती है।
प्रवचन करते हुए कहा कि संसार में मनुष्य को सदा अच्छे कर्म करना चाहिए। तभी उसका कल्याण संभव है। माता-पिता के संस्कार ही संतान में जाते हैं। श्रेष्ठ कर्म से ही मोक्ष की प्राप्ति संभव है। ।शाम 6:15बजे से रात्रि 11बजे तक चलने वाली कथा में बड़ी संख्या में महिला-पुरूष कथा श्रवण करने पहुंचे।इसके पूर्ब कथा में महाआरती श्याम सेवा मण्डल के सचिव विनय वाजपेयी सपत्नी शशि वाजपेयी ने किया ।कार्यक्रम के अंत मे प्रसाद का वितरण किया गया। इस अवसर पर कथा संयोजक विकाश अग्रवाल , श्याम सेवा मण्डल अध्यक्ष अनिल सिंघानिया,सचिव विनय वाजपेयी,पंडित रामयश पांडेय,संतोष चौबे ,सुधांशु दुबे,गोपाल मुखर्जी,नरेश शर्मा,दीपक सरावगी,अरुण सिंह उर्फ मुन्ना सिंह,अरुण कुमार दारा सिंह, अजय कुमार शर्मा सहित हजारो लोग मौजूद रहे।

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