पांच प्रान्तों के भक्तों का आस्था का केंद्र है यह कालीमाता का मंदिर

सोनभद्र। झारखण्ड राज्य और उत्तर प्रदेश की सीमा पर मिर्जापुर के अंग्रेज कलेक्टर विंढम के द्वारा बसाए गए कस्बे विंढमगंज में मां काली का मंदिर पांच प्रान्तों झारखंड, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश , बिहार और उत्तर प्रदेश के श्रद्धालुओं के आस्था का केंद्र है।
सतत वाहिनी नदी के किनारे स्थित इस मंदिर का इतिहास काफी पुराना है । स्थानीय लोगो की ऐसी मान्यता है कि नगर उटारी के वंशीधर की मन्दिर के समय ही इस मंदिर की स्थापना हुई थी।

आजादी के पूर्व यह मंदिर आदिवासियों के प्रमुख आस्था का केंद्र था, जब विंढमगंज की स्थापना वर्ष 1902 में अंग्रेज कलेक्टर विंढम साहब ने किया था। उसके पूर्व भी यह मंदिर यहां स्थापित थी विंढमगंज नगर बसने के बाद इस मंदिर का भी निर्माण स्थानीय लोगों ने कराया, जो 80 के दशक तक क्षतिग्रस्त हो गया। फिर स्थानीय लोगों ने प्रत्येक दिन 10 – 10 पैसा का चंदा देकर वर्तमान मंदिर का निर्माण कराया। लोगों की ऐसी मान्यता है कि यहां पर सच्चे मन से जो भी प्रार्थना मां काली से की जाती है वह अवश्य पूरी होती है।

नवरात्र में होती है दो बार महा आरती।
वैसे तो हर दिन यहां पर पूजा-पाठ और आरती होता है, लेकिन हर नवरात्र में यहां पर विशेष पूजा अर्चना अनुष्ठान के अलावा सुबह -शाम महा आरती का आयोजन किया जाता है।जिसमें हजारों की संख्या में प्रतिदिन खासतौर पर महिलाएं शामिल होती है। नवरात्र में शाम को होने वाले आरती का विशेष महत्व यहां पर है, इस दौरान प्रत्येक दिन महाप्रसाद का भी वितरण शाम को किया जाता है।

नारियल की बलि से प्रसन्न होती है माँ काली।
मां काली का मन्दिर आदिवासियों का प्रमुख आस्था का केंद्र था, तब यहां पर बलि प्रथा प्रचलित थी, लेकिन जब राम प्रसाद तिवारी इस मंदिर के पुजारी बने उन्होंने बलि प्रथा को रोकते हुए माता काली को नारियल से प्रसन्न करने का बीड़ा उठाया तब से यहां पर बलि की प्रथा बंद हो गई ऐसी मान्यता है कि माता काली अब यहां नारियल की बली सही प्रसन्न हो जाती है।

भक्तों की हर मुराद होती है पूरी।
मां काली से भक्तों ने जो मुराद मांगी उसे मां ने अवश्य पूरा किया और इसके लिए भक्तों द्वारा नारियल बांधे जाते है।

मन्दिर की विशेषता।

मां काली की मूर्ति सुंदर और अद्भुत है, काले और ग्रेनाइट पत्थर से बनी मूर्ति की सुंदरता देखते ही बनती है। मंदिर बने सैकड़ों वर्ष हो जाने के बाद भी इस मूर्ति की सुंदरता दिन प्रतिदिन बढ़ती ही जाती है करीब 200 साल से यह मूर्ति जैसे पहले थी वैसे आज भी है।

मन्दिर के प्रधान पुजारी मनोज कुमार शास्त्री और नंदलाल तिवारी बताते है कि माता काली की प्रतिमा में अद्भुत आकर्षण है सच्चे मन से जो भी मुराद मां से मांगी जाती है उसे माता अवश्य पूरा करते हैं आज तक हमने जो भी मांगा है उसे मां काली ने अवश्य पूरा किया माता काली की महिमा अपरंपार है। मंदिर पर सच्चे मन से जो भक्त यहां पर मां की आराधना करता है और अपने मनौती का नारियल इस मंदिर में बनता है उसकी मनौती हमेशा मां पूरी करती है नवरात्र के द्वारा प्रतिदिन महाआरती का आयोजन किया जाता है जिसमें भारी संख्या में लोग शामिल होते हैं आरती का यहां विशेष महत्व है।

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