काशी के विद्वत जनो के द्वारा संपन्न हुई गुप्तकाशी तीर्थ यात्रा

मिथिलेश द्विवेदी/भोलानाथ मिश्र की कलम से

सोनभद्र। (सर्वेश श्रीवास्तव) रविवार को काशी के विद्वानों (विद्वत् सदस्यगण, चिकित्सक गण, व्यवसायी गण, शोधकर्ता गण, चिंतक गण, समाजिक कार्यकर्ता गण) द्वारा विगत वर्षों की भांति पौराणिक, वैदिक काल से मानव सभ्यता के विकास में अपना योगदान दर्ज कराने वाले भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता पर आधारित ऐतिहासिक, पौराणिक, सांस्कृतिक विंध्य पर्वत की श्रृंखला

में स्थित विंध्य क्षेत्र का पृष्ठ भाग जहाँ सोन गंगा सीमांकन करती, जहाँ देव ऋषियों की तपोभूमि सिद्ध पीठ अवस्थित , सोन घाटी, सोन माटी अपने सुंदरता , मनोरमता , ऊर्जा , खनिज संपदा से परिपूर्ण, पर्यटन के सौंदर्यता के दृश्य के लिए विख्यात सोनभद्र में “तीर्थायन यात्रा” 2024 सम्पन्न हुई। इस यात्रा के संयोजक अखिल भारतीय भगवान श्री परशुराम अखाड़ा परिषद के पंडित आलोक चतुर्वेदी ने कहां

कि मैं धन्य हुआ इस गुप्तकाशी के धन्य धरा पर, मेरा भी जन्म हुआ सोनभद्र भारत का एकमात्र जिला है जो मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ झारखंड और बिहार के चार राज्यों से सटा है। सोनभद्र जिला एक औद्योगिक क्षेत्र है और इसमें बॉक्साइट, चूना पत्थर, कोयला, सोना आदि जैसे बहुत सारे खनिज हैं। सोनभद्र को भारत की ऊर्जा राजधानी कहा जाता है। यात्रा आयोजक ‘तीर्थायन’ के पंडित अवधेश दीक्षित ने कहा कि काशी से गुप्त काशी की यात्रा प्रारंभ करने के पीछे का यह स्पष्ट मकसद है कि धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण रामायण और महाभारत के साक्ष्य के आधार पर, यहां मिले हुये सांस्कृतिक प्रतीक हैं। जरासंध द्वारा महाभारत युद्ध में कई शासकों को यहां कैदी बनाए रखा गया था। सोन नदी की घाटी गुफाओं में प्रचलित है जो प्राचीन निवासियों के सबसे शुरुआती घर थे। ऐसा कहा जाता है कि ‘भार’ के पास 5 वीं शताब्दी तक जिले में चेरोस, सीरीस, कोल्स और खेरवार समुदायों के साथ समझौता हुआ था, विजयगढ़ किले पर ‘कोल’ राजाओं का शासन था। यह जिला 11 वीं से 13 वीं शताब्दी के दौरान दूसरी काशी के रूप में प्रसिद्ध था। 9वीं शताब्दी ईसा पूर्व में, ब्राह्मणत्त वंश को नागास द्वारा विभाजित किया गया था। 8 वीं और 7 वीं शताब्दी ईसा पूर्व में, जिले का वर्तमान क्षेत्र कौशला और मगध में था। गुप्त काल के आगमन से पहले कुशंस और नागा भी इस क्षेत्र में सर्वोच्चता रखते थे। 7 वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में हर्षवर्धन की मृत्यु के बाद, यह गजनी के महमूद द्वारा संचालित किए जाने से पहले 1025 तक गुर्जर और प्रतिहारों के नियंत्रण में रहा। यह क्षेत्र मुगल सम्राटों के विभिन्न गवर्नरों के प्रशासन में था और यहां की संपूर्ण सभ्यता रहन-सहन पूजा पाठ काशी आधारित है। यात्रा का नेतृत्व करते हुए संजय शुक्ला ने कहा गुप्तकाशी’ नाम, जिसका अर्थ है ‘छिपा हुआ बनारस’, महाभारत के महाकाव्य से इसके संबंध को दर्शाता है, जहाँ युद्ध के बाद पांडवों द्वारा भगवान शिव के प्रथम दर्शन यहीं हुए थे। पौराणिक कथाओं के अनुसार, महाकाव्य महाभारत के पांडवों ने भगवान शिव को गुप्तकाशी में छिपे हुए पाया था, जब वे उनका आशीर्वाद लिए थे। प्रो. सिद्धनाथ उपाध्याय पूर्व निदेशक आईआईटी बीएचयू ने कहा गुप्तकाशी के प्राकृतिक वैभव के बीच छिपे हुए आश्चर्यों का खजाना है, जो आपकी खोज का इंतजार कर रहा है। पवित्र तीर्थस्थल से इसकी निकटता के अलावा, यहाँ कई अन्य दर्शनीय स्थल भी हैं। यहाँ के शिव मंदिर प्राचीन किंवदंतियों, शांत परिदृश्यों और आध्यात्मिक ज्ञान की एक दुनिया है, जिसे खोजा जाना बाकी है। गुप्तकाशी के हर कोने में एक कहानी छिपी है, जो भारत की सांस्कृतिक विरासत की समृद्ध झलक पेश करती है। प्रो. प्रदीप कुमार मिश्रा पूर्व कुलपति अब्दुल कलाम टेक्निकल यूनिवर्सिटी लखनऊ ने कहा आइए गुप्तकाशी के शांत परिदृश्य, प्राचीन मंदिरों और दिव्य वातावरण के माध्यम से रोमांच की शुरुआत करें और जब आप अपनी यात्रा की योजना बनाते हैं, तो गुप्तकाशी के सर्वश्रेष्ठ पहाड़ो पर आराम और शांति का आनंद लेने का मौका लें। हमारे साथ जुड़ें क्योंकि हम गुप्तकाशी के दिल में गहराई से उतरते हैं, जहाँ हर कदम एक नए रोमांच को उजागर करता है, और हर पल खोज के वादे से भरा होता है।
प्रो. अरविन्द जोशी काशी हिंदू विश्वविद्यालय ने कहा की प्राचीन परंपराओं और सांस्कृतिक विरासत के संरक्षक के रूप में, गुप्तकाशी पिछली पीढ़ियों की स्थायी आस्था और भक्ति का प्रमाण है। गुप्तकाशी की खूबसूरत दुनिया में कदम रखें, जहाँ कालातीत स्मारक एक समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के रूप में खड़े हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विभाग बौद्धिक प्रमुख धनंजय पाठक ने कहा कि गुप्तकाशी में प्राकृतिक सुंदरता के समस्त रूप विराजमान हैं यहां रेगिस्तान की तरह दिखने वाला सोन नदी की बालू का क्षेत्र है तो उत्तराखंड की तरह दिखने वाली पहाड़ियां भी विराजमान है किसानो की कृषि को समृद्ध करने वाले कृषि भूमि भी है। प्रवीण चंद पाण्डेय , सामाजिक कार्यकर्ता ने कहा की धन्य धरा जहां एक साथ इतने अलौकिक केंद्र उपस्थित है इस जिले की मुख्य प्राण वायु हैं गुरु कृपा आश्रम जो संपूर्ण जिले की सुंदरता को अपने में समेटे हुए हैं जिसने सोनभद्र में गुरु कृपा आश्रम नहीं देखा उसने सोनभद्र को नहीं देखा। संपूर्ण यात्रा सर्किट हाउस से प्रारंभ होकर वीर लोरिक पत्थर, इको पॉइंट, फॉसिल्स पार्क, शिव मंदिर गोठानी, अगोरी किला, दुअरा घाटी, अमर गुफा, अंचलेश्वर महादेव मंदिर होते गुरु कृपा आश्रम पहुंची जहां पर सोनभद्र के कला संस्कृति का प्रदर्शन आदिवासी समाज ने किया तत्पश्चात सहभोज कार्यक्रम संपन्न हुआ। फिर वहां से यात्रा प्रारंभ होकर हाथी नाला हनुमान मंदिर, बायोडायवर्सिटी पार्क, वैष्णो मंदिर डाला होते हुए गुप्तकाशी से काशी के लिए रवाना हो गई। यात्रा को अखिल भारतीय भगवान परशुराम अखाड़ा परिषद, तीर्थायन वाराणसी, दुर्गा भूषण फाउंडेशन, काशी कथा आश्रम, अंतरराष्ट्रीय काशी घाट वाक विश्वविद्यालय, के सहयोग से सम्पन्न हुई। यात्रा में संयोजक अखिल भारतीय भगवान श्री परशुराम अखाड़ा परिषद के पंडित आलोक चतुर्वेदी, आयोजक ‘तीर्थायन’ के पंडित अवधेश दीक्षित, प्रो. सिद्धनाथ उपाध्याय, पूर्व निदेशक आईआईटी बीएचयू,प्रो. प्रदीप कुमार मिश्रा, पूर्व कुलपति अब्दुल कलाम टेक्निकल यूनिवर्सिटी लखनऊ, प्रो. विजय नाथ मिश्र विश्व के जाने-माने न्यूरोलॉजिस्ट, पूर्व चिकित्सा अधीक्षक काशी हिंदू विश्वविद्यालय, धनंजय पाठक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विभाग बौद्धिक प्रमुख, प्रवीण चंद्र पांडे, धनंजय पाठक, मनोज चौबे, गणेश तिवारी, रामभरोस यादव, दिग्विजय सिंह व्यवस्थापक के रूप में उपस्थित रहे। यात्रा के दौरान मृत्युंजय मालवीय, डॉ अनिल गुप्ता चिकित्साधिकारी वाराणसी, डॉ प्रभाष झा जिला विद्यालय निरीक्षक वाराणसी, तापस दास जनरल मैनेजर शैलेश तिवारी, डॉ धर्मजंग, रवि विश्वकर्मा, अभिषेक यादव, अमित राय सहित विविध क्षेत्रों के सैकड़ों गणमान्य लोग शामिल रहे।

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