सोनभद्र।आज लोग टीवी, नेट, कंप्यूटर, मोबाइल में व्यस्त है,सारे ज्ञान का माध्यम ज्यादातर लोग नेट को ही मानते हैं, ऐसे संक्रमण के काल में भी भारतीय धर्म, संस्कृति, साहित्य, कला, अध्यात्म की शिक्षा प्रदान करने वाली रामकथा पर आधारित रामलीला भारतवर्ष में ही नहीं बल्कि संपूर्ण विश्व में लोकप्रिय है। भगवान राम की लीला भूमि उत्तर प्रदेश के विभिन्न स्थल हैं और राम जन्म भूमि अयोध्या रही है और वनवास काल में भगवान राम के सहयोगी आदिवासीजन रहे हैं, राम कथा का महत्व आदिवासी अंचलों में व्याप्त है रामकथा की रचना करने वाले महर्षि बाल्मीकि आश्रम उत्तर प्रदेश में ही संचालित था और रामकथा को जन-जन तक पहुंचाने वाले गोस्वामी तुलसीदास काशी में राम कथा लिखकर अमर हो गए। काशी से सटे विंध्य पर्वत पर अवस्थित गुप्तकाशी का धार्मिक, संस्कृति दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थान है इसके साक्षी यहां पर अवस्थित शिवालय, देवालय हैं । वनवास के बाद भगवान राम गुप्तकाशी से होकर ही रामेश्वरम गए थे और गुप्तकाशी संप्रति सोनभद्र जनपद में रामकथा आदिवासी जातियों में लोकप्रिय है,
जनपद मुख्यालय रावटसगंज की स्थापना 1846 हुई थी, इसकी स्थापना का श्रेय मिर्जापुर के उप जिलाधिकारी डब्लू बी रॉबर्ट्स जाता है स्थापना काल मे यह क्षेत्र जंगल था और रॉबर्ट्सगंज नगर के समीप बरकरा गांव आबाद था और यहां पर बाजार विकसित था, यहां पर केशरवानी वंश के लोग सर्वप्रथम आकर बसे तत्पश्चात अन्य प्रदेशों से यथा मारवाड़ से मारवाड़ी हरियाणा से हरियाणवी आदि जातियों के लोग व्यवसाय करने के लिए रावटसगंज नगर में बसे और यहां पर संस्कृति का विकास हुआऔर मिर्जापुर के तर्ज पर नगर में रामलीला का शुभारंभ टाउन एरिया के प्रथम अध्यक्ष बद्रीनारायण द्वारा कराया गया उस समय आजकल की तरह व्यवस्था नहीं थी नगर के लोग ही एक कमेटी बनाई थी और रामलीला स्वयं करते थे जिसमें बड़े ही उत्साह पूर्वक युवा और बच्चे भाग लेते थे और वर्तमान रामलीला मैदान उस समय कंपनी बाग के नाम से जाना जाता था और यही रामलीला का आयोजन होता था, बद्री प्रसाद के बाद उनके भतीजे बलराम दास, भोला सेठ, परमेश्वर जालान, डॉक्टर कन्हैयालाल, श्यामसुंदर झुनझुनवाला, शंभू सेठ, विश्वनाथ प्रसाद केडिया,, आदि नगर के नागरिक, व्यापारीगणों के सहयोग से रामलीला का मंचन रामलीला मैदान में रावण के पुतले का दहन कार्यक्रम आयोजित होता रहा इसके पश्चात नगर पालिका परिषद पूर्व अध्यक्ष जितेंद्र सिंह द्वारा रामलीला समिति के अध्यक्ष पद का निर्वहन करते हुए रामलीला और दशहरे के मेले का आयोजन कराया जाता रहा।वर्तमान समय में रामलीला समिति के अध्यक्ष पवन कुमार जैन है जिनके नेतृत्व में रामलीला का मंचन, दशहरे मेले का आयोजन होता है। इस मेले का मुख्य आकर्षण अहरौरा एवं चुनार के बने हुए मिट्टी के खिलौने बनारसी रेवड़ी चुरा आदि होते हैं, दशहरे के मेले की भीड़ को नियंत्रित करने के लिए एक आदमी शेर का रूप धारण कर मिले भर घूमता था और मेला समाप्त होने के बाद बाजार से बाजार में घूम कर लोगों से पैसा लेता था अब यह परंपरा खत्म हो चुकी है।रामलीला के मंचन के समय भीड़ को नियंत्रित करने के लिए और व्यवस्था को कायम रखने के लिए स्थानीय जन स्वयंसेवक के रूप में कार्य करते थे अब रामलीला में इक्के दुक्के लोगी इस व्यवस्था को नियंत्रित करते नजर आते हैं।
रॉबर्ट्सगंज की स्थापना को लगभग 173 वर्ष हो चुके हैं यहां की एक अलग सांस्कृतिक , धार्मिक परंपरा है। आज भी नगर के हर वर्ग के लोग रामलीला मंचन का आनंद लेने के लिए रामलीला मैदान जुटते हैं और रामकथा का भरपूर रसास्वादन करते हैं, मनोरंजन करते हैं और ज्ञान प्राप्त करते हैं।