★ यूपी ही हैं मोदी का सबसे बड़ा टेंशन !
हेमंत तिवारी
लखनऊ ।
महज 20 दिनों में छह रैलियां, हर रोज लगते नए कार्यक्रम और अब तक एक लाख करोड़ रुपये से ज्यादा की परियोजनाओं का शिलान्यास व लोकापर्ण।
सर्जिकल स्ट्राइक से व्यापी जनभावना, राष्ट्रवाद का बढ़ता ज्वार भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उत्तर प्रदेश की चिंता से मुक्त नही कर पा रहा है। बीते कुछ दिनों के ताबड़तोड़ प्रदेश के दौरे और कम समय में बहुत कुछ कर देने की छटपटाहट यो यही इशारा करती है कि सबसे ज्यादा सांसद देने वाले इस प्रदेश में भाजपा के लिए अब भी सब कुछ ठीक नही है।
पुलवामा हमले के ठीक अगले दिन प्रधानमंत्री मोदी उत्तर प्रदेश में झांसी में थे जहां उन्होंने डिफेंस कारीडोर की आधारशिला रखी साथ में कई अन्य परियोजनाओं की भी। इस नाजुक मौके पर खुद को मजबूत बनाने में यूपी की जीत का योगदान बताना व याद दिलाना वह नही भूले। इसके बाद इलाहाबाद, वाराणसी, गोरखपुर, अमेठी और फिर इसी हफ्ते मोदी कानपुर में होंगे। कानपुर के दौरे वाले दिन 8 मार्च को ही उनका वाराणसी जाने का भी कार्यक्रम भी है।
प्रधानमंत्री के बरअक्स सूबे के मुखिया योगी आदित्यनाथ भी प्रदेश की सड़कें हर रोज नाप रहे हैं और जिले-जिले में विकास की योजनाओं की शुरुआत करते जा रहे हैं। लंबे समय से हाशिए पर डाल रखे गए भाजपा के पिछड़े चेहरे केशव प्रसाद मौर्य को फिर से जुटा दिया गया है और वह भी मुख्यधारा में लौटते हुए जोरदार तरीके से कार्यक्रमों की झड़ी लगा रहे हैं।
खुद पार्टी के स्तर पर कार्यक्रमों की बाढ़ आ गयी है। हर रोज एक नया अभियान या मिशन शुरु हो रहा है। प्रदेश स्तर से लेकर स्थानीय नेताओं और कार्यकर्त्ताओं को दम मारने तक की फुरसत नही दी जा रही है।
★ कानपुर में बनेगा विकास का असली काकटेल—
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में मेट्रो के दूसरे चरण की शुरुआत 8 मार्च को होगी। कानपुर में सेकेंड ग्राउंड ग्राउंड ब्रेकिंग सेरेमनी के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मेट्रो के संचालन का रिमोट से बटन दबाएंगे जबकि गृह मंत्री और लखनऊ के सांसद राजनाथ सिंह यहां हरी झंडी दिखाएंगे। सेकेंड ग्राउंड ब्रेकिंग सेरमनी में प्रधानमंत्री उत्तर प्रदेश की 300 से ज्यादा औद्योगिक परियोजनाओं की आधारशिला रखेंगे।
इसी दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर कारीडोर के निर्माण के लिए भूमि पूजन भी करेंगे। इसके लिए वह वाराणसी जाएंगे। उधर कानपुर में प्रधानमंत्री निरालानगर ग्राउंड पर होने वाली जनसभा के दौरान ही विभिन्न औद्योगिक परियोजनाओं का लोकार्पण व शिलान्यास करेंगे। प्रधानमंत्री लखनऊ मेट्रो के विस्तार का लोकार्पण, कानपुर और आगरा मेट्रो, पनकी 660 मेगावाट पावर हाउस, 225 मेगावाट सोलर प्लांट का शिलान्यास भी कानपुर की जनसभा के दौरान ही करेंगे। सेकेंड ग्राउंड ब्रेकिंग सेरेमनी में 72000 करोड़ रुपये की 300 से ज्यादा परियोजनाओं का शिलान्यास होगा। इसमें बुंदेलखंड में बन रहे डिफेंस कारीडोर में 4000 करोड़ रुपये की परियोजनाएं शामिल हैं। सेकेंड ग्राउंड ब्रेकिंग सेरेमनी में आदित्य विक्रम बिरला समूह की सीमेंट फैक्ट्री की शिलान्यास किए जाने की योजना है जबकि सहारनपुर व बिजनौर में सनलाइट यूल्स लिमिटेड 1550 करोड़ रुपये की लागत से कूड़े व जैविक ईंधन से बिजली बनाने का संयंत्र लगाएगी। मोबाइल के क्षेत्र की अग्रणी कंपनी नोकिया के 5000 करोड़ रुपये की ईकाई, वीवो मोबाइल के 5200 करोड़ रुपये के संयंत्र और हायर के 3000 करोड़ रुपये की निर्माण ईकाई के संयंत्र की भी आधारशिला सेरेमनी में रखी जाएगी। एनटीपीसी के 1225 करोड़ रुपये और एचपीसीएल के 900 करोड़ रुपये के उत्पादन गृहों का भी शिलान्यास होगा।
बीते साल ही जुलाई में 60000 करोड़ रुपये की लागत वाली 81 परियोजनाओं की शुरुआत पहले ग्राउंड ब्रेकिंग सेरेमनी में की गयी थी। इनमें एस्सेल समूह, अदाणी व आदित्य विक्रम बिरला समूह की परियोजनाएं शामिल हैं।
★ माया का ब्राह्म्ण कार्ड भी है परेशानी की वजह-—
सपा-बसपा गठबंधन के बावजूद मायवाती लोकसभा चुनाव 2019 में एक बार फिर ब्राह्मण कार्ड आजमाना शुरु कर दिया है। आम चुनाव 2019 के लिए बसपा सुप्रीमो ने अभी तक जितने भी लोकसभा प्रभारी घोषित किए हैं, उनमें सबसे बड़ी तादाद ब्राह्मण समुदाय के नेताओं की हैं। बसपा में माना जाता है कि जिन्हें लोकसभा प्रभारी बनाया जाता है, वही उम्मीदवार होते हैं।
बसपा के लिए पश्चिम यूपी की तुलना में पूर्वी उत्तर प्रदेश थोड़ा कमजोर माना जाता है। ऐसे में मायावती ने बड़ा दांव चला है। बसपा सुप्रीमो ने रविवार को उत्तर प्रदेश में 18 प्रभारियों के नाम घोषित किए हैं। बसपा ने ब्राह्मण कार्ड के रूप में भदोही से रंगनाथ मिश्रा, सीतापुर से नकुल दुबे, फतेहपुर सीकरी से सीमा उपाध्याय, घोसी से अजय राय, प्रतापगढ़ से अशोक तिवारी और खलीलाबाद से कुशल तिवारी के नाम लगभग तय माना जा रहे हैं। पूर्वांचल ब्राह्मण को मजबूत गढ़ माना जाता है. यही वजह है कि बसपा पूर्वी उत्तर प्रदेश से 6 ब्राह्मण चेहरे उतारने का मन बना चुकी है।
दरअसल उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण कार्ड चलने के पीछे बसपा की आजमाई नीति ही काम कर रही है। साल 2007 के यूपी विधानसभा चुनाव और 2009 के लोकसभा चुनाव में बसपा ने दलित-ब्राह्मण गठजोड़ का बड़ा प्रयोग किया था। मायावती को इसका राजनीतिक फायदा भी मिला था। यही वजह है कि पूर्वांचल में कांग्रेस-बीजेपी की काट के लिए बसपा ब्राह्मणों पर एक बार फिर भरोसा जताया है।
पूर्वांचल में ब्राह्मण और ठाकुरों के बीच राजनीतिक वर्चस्व की लड़ाई जग-जाहिर है। हालांकि मोदी लहर में यह लड़ाई कुंद पड़ गई थी, लेकिन मायावती को उम्मीद है कि योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद ब्राह्मणों को अपने पाले में वो लाने में सफल हो सकती हैं। दरअसल सीएम योगी राजपूत समुदाय से आते हैं और हाल के दिनों में उन पर अपने समुदाय को हर जगह प्राथमिकता देने का आरोप भी लगता रहा है। मायावती के ब्राह्म्ण कार्ड से निपटना भी भाजपा के लिए बड़ी चुनौती है। प्रदेश अध्यक्ष इसी समुदाय का देने के बाद भी भाजपा इस बिरादरी को लेकर बहुत आश्वस्त नही हो पा रही है।
★ प्रियंका फैक्टर से निपटना भी है बड़ी चुनौती–
प्रियंका गांधी के राजनीति में औपचारिक प्रवेश और उनको पूर्वांचल का प्रभार दिए जाने के बाद कांग्रेस भी अपना पूरा दम-खम पूर्वी उत्तर प्रदेश में लगा रखा है। कांग्रेस ने प्रियंका गांधी को पूर्वांचल की कमान सौंपी है। ऐसे में राजनीतिक दलों के बीच ब्राह्मण वोटों को अपने पाले में लाने कोशिश तेज हो गई है। बसपा का पूर्वांचल की ज्यादातर सीटों पर ब्राह्मण उम्मीदवार पर दांव लगाना इस रणनीति का हिस्सा है। दूसरी ओर सपा और बसपा में 37 -38 सीटों का बंटवारा होने के बाद दोनो दलों के रुष्ट व टिकट से वंचित नेताओं की आमद तेजी से कांग्रेस में होने लगी है। ऐसे में तीसरा कोण बनाने में जुटी कांग्रेस और प्रियंका फैक्टर से निपटने के लिए भी भाजपा खासा जोर लगा रही है। उत्तर प्रदेश के दलबदल का दौर जोर पकड़ चुका हैं. फतेहपुर सीट बसपा के कोटे में गयी तो 2009 में यहां से सांसद और 2014 में दूसरे नंबर पर रहे राकेश सचान समाजवादी पार्टी छोड़ कर अब कांग्रेसी हो गए. 2009 में सीतापुर से बसपा की सांसद रहीं केसर जहाँ भी अब कांग्रेसी है. बहराईच से भाजपा की मौजूदा सांसद सावित्री बाई फुले भी कांग्रेस का दामन थाम चुकी है. वास्तव में यूपी में कांग्रेस के पास कार्यकर्ताओं से कही ज्यादा नेता है और इन नेताओं में ज्यादात्तर ऐसे नेता है जिनका लगातार चुनाव हारने का रिकॉर्ड रहा है. ऐसे में कांग्रेस की निगाह भाजपा, सपा और बसपा के उन नेताओं पर है जो मजबूत तो है लेकिन मौजूदा समीकरणों में अपनी पार्टी से टिकट नहीं पा रहे है. खबर है की भाजपा अपने तीन दर्जन मौजूदा सांसदों के टिकट काट रही है. मंगलवार को सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव और आरएलडी नेता जयंत चौधरी की बैठक के बाद गठबंधन की शक्ल औपचारिक तौर पर आम हो गयी जिसके मुताबिक बीएसपी 38, सपा 37 और आरएलडी 3 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। गठबंधन ने अमेठी और रायबरेली सीटें कांग्रेस के लिए सहानुभूति में छोड़ दी हैं. जाहिर है अब कांग्रेस अकेले मैदान में होगी और उसे छोटे सहयोगी दलों और चुनाव लड़ने के लिए बड़े चेहरों की जरूरत होगी।