मुरीदों को फर्जों का पाबंद बनाते हैं सच्चे पीर रूहानियत का बड़ा मरकज है सफीपुर शरीफ

दुद्धी, सोनभद्र। (भीमकुमार) निस्बत बहुत बड़ी चीज है। निस्बत की बरकत से मामूली चीज़ बहुत बड़ी और अहम हो जाती है। यही वजह है कि हम अपने बुजुर्गों के तबर्रुकात की ताज़ीम व तकरीम कर उससे फ़ैज़ व बरकत हासिल करते हैं। उक्त बातें कालपी शरीफ के अनवर बकाई व कदौरा जालौन के मु.वाहिद बकाई ने संयुक्त रूप से अखबारनवीसों से मुखातिब होते हुए कही। कहा कि सफीपुर शरीफ तकरीबन 800 सालों से रूहानियत का मरकज़ चला आ रहा है। महरैहरा शरीफ के बड़े सरकार हजरत मीर अब्दुल वाहिद बिलगिरामी हजरत मखदूम शाह सफी के मुरीद हैं। मकदूमे मिल्लत सैकुल हिन्द हजरत अल्लामा सैय्यद वलीउल्लाह शाह बकाई आरिफी चिश्ती सज्जादा नशीं खानकाहे आलिया बकाईयाँ एक मशहूर और मारूफ हस्ती हैं। जिनके हजारों मुरीदीन दुनियां भर में फैले हुए हैं। आप ही सिलसिले आलिया बकाईयाँ चिश्तिया के बानी व सरपरस्त हैं। लगभग साढ़े चार हजार खानकाहें सफीपुर शरीफ से बवस्ता हैं। अपने मुरीदों को ख़िलाफ़े शरीयत काम करने से रोकना व इस्लामिक फ़र्ज़ों के पाबंद बनाना इसकी दिनचर्या में शुमार है।
लोगों ने यह भी कहा कि कुरान शरीफ में अल्लाह पाक ने अपने बंदों को यह तालीम दी है कि मुझ तक पहुंचने के लिए वसीला तलाश करो। बुजुर्गों और सूफियों ने इस वसीला का मतलब कामिल पीर बयान फरमाया है। बैअत को सुन्नत करार दिया है। इसलिए जरूरी है कि हम किसी सच्चे कामिल पीर की दामन से बावस्ता हो जाएं, और उनकी तर्बियत में रहकर अपने दिल की सफाई करें। फ़र्ज़, वाज़िब और सुन्नतों पर अमल करके अल्लाह का महबूब बनने की कोशिश करें। अंत में इस शेर के साथ अपनी बात खत्म करते हुए कहा कि “तुम हक पे अगर हो तो क्या रुतबा तुम्हारा है, फ़िरऔन तो मूसा से हर दौर में हारा है।

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