असम के एक गांव का आइडिया, गत्तों के डिब्बों में घाेंसला बनाया तो लौट आईं गौरेया

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लाइफस्टाइल डेस्क. पिछले 40 सालों में भारत में गौरैया की तादाद 60% तक घटी है लेकिन देश में एक ऐसा गांव भी है जहां इनके गुनगुनाने की आवाज गूंजती है। महज 65 घरों वाले असम के एक गांव बोरबली समुआ ने गौरेया को बचाने के लिए खास तरह की पहल शुरू की। यहां के ग्रामीण कार्ड बोर्ड से गौरेया का घोसला बनाकर इन्हें संरक्षित करने का प्रयास कर रहे हैं। इस अभियान की शुरुआत असम एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी के चीफ साइंटिस्ट प्रबल सायकिया ने की और लोगों तक इनके संरक्षण की बात पहुंचाने की जिम्मेदारी जयंत नियोग निभा रहे हैं। आज विश्व गौरेया दिवस है, इस मौके पर जानिए इसे बचाने की कहानी…

  1. पेशे से एक चावल मील के मालिक जयंत नियोग गांव-गांव जाकर गौरेया बचाने के लिए लोगों को जागरूक करते हैं। इनके घर के आसपास कार्डबोर्ड, लकड़ी, जूते के डिब्बे और बांस की मदद से गौरेया के कई कृत्रिम घर बनाए गए हैं। जयंत के मुताबिक, गौरेया को संरक्षण देने की कोशिश 2013 में शुरू की गई थी। उस दौरान गांव में गौरेया की संख्या तो काफी थी लेकिन इनके लिए आशियाना नहीं था। धीरे-धीरे घरों में इनके लिए कृत्रिम घर बनाने की शुरुआत की गई। वर्तमान में मिट्टी के घोसलों की जगह इनके लिए क्रंकीट के घर बनाए जा रहे हैं।

  2. असम एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी के चीफ साइंटिस्ट प्रबल सायकिया के मुताबिक, 2009 में हुए एक सर्वे में सामने आया था कि इनकी संख्या में तेजी से कमी हो रही है। खत्म होते पेड़, बढ़ती इमारतों की संख्या, कम होते कीट और टावरों से निकलता रेडिएशन इसका कारण बताया गया। यह एक संकेत था कि हम एक गलत तरह से जीवन जी रहे हैं।

  3. गौरेया को बचाने के लिए वैज्ञानिक प्रबल सायकिया ने कार्डबोर्ड की मदद से कृत्रिम घोसले बनाने शुरू किए, जिसे बनाने में महज 10 रुपए का खर्च आता है। धीरे-धीरे यह तरीका लोगों को पसंद आने लगा और असम में इसे प्रमोट किया गया। उनके मुताबिक, इन कृत्रिम घोसलों की मदद से गौरेया को परभक्षियों से बचाया जा सकता है। वैज्ञानिक प्रबल सायकिया ने इस अभियान के तहत असम के कई गांवों में 20 हजार से अधिक डिब्बों का वितरण किया।

  4. वैज्ञानिक प्रबल सायकिया कहते हैं, हम लोगों को कचरे को बेहतर इस्तेमाल का तरीका बता रहे हैं ताकि वे बेकार डिब्बों की मदद से गौरेया के लिए घोसले तैयार कर सकें। गौरेया संरक्षणकर्ता जयंत का कहना है कि वैज्ञानिक प्रबल के द्वारा दिए गए डिब्बे वे लोगों तक पहुंचा रहे हैं। इस पहल का नतीजा यह है कि अब गौरेया की संख्या बढ़ रही है।

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      assam village people making cardboard nest to save house sparrow


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